Wednesday, February 9, 2011

सूचना का अधिकार , बड़े काम का हथियार, जानने का अधिकार, जीने का अधिकार :RTI का प्रयोग करे

क्या है सूचना का अधिकार
सूचना का अधिकार अधिनियम भारत की संसद द्वारा पारित एक कानून है, जो 12
अक्टूबर 2005 को लागू हुआ. यह कानून भारत के  सभी नागरिकों को सरकारी
फाइलों/रिकॉडर्‌‌स में दर्ज सूचना को देखने और उसे प्राप्त करने का
अधिकार देता है. जम्मू एवं कश्मीर को छोड़ कर भारत के सभी भागों में यह
अधिनियम लागू है. सरकार के संचालन और अधिकारियों/कर्मचारियों के वेतन के
मद में खर्च होने वाली रकम का प्रबंध भी हमारे-आपके द्वारा दिए गए करों
से ही किया जाता है. यहां तक कि एक रिक्शा चलाने वाला भी जब बाज़ार से कुछ
खरीदता है तो वह बिक्री कर, उत्पाद शुल्क इत्यादि के रूप में टैक्स देता
है. इसलिए हम सभी को यह जानने का अधिकार है कि उस धन को किस प्रकार खर्च
किया जा रहा है. यह हमारे मौलिक अधिकारों का एक हिस्सा है.

किससे और क्या सूचना मांग सकते हैं
सभी इकाइयों/विभागों, जो संविधान या अन्य कानूनों या किसी सरकारी
अधिसूचना के  अधीन बने हैं अथवा सरकार द्वारा नियंत्रित या वित्तपोषित
किए जाते हों, वहां से संबंधित सूचना मांगी जा सकती है.

सरकार से कोई भी सूचना मांग सकते हैं.
सरकारी निर्णय की प्रति ले सकते हैं.
सरकारी दस्तावेजों का निरीक्षण कर सकते हैं.
सरकारी कार्य का निरीक्षण कर सकते हैं.
सरकारी कार्य के पदार्थों के नमूने ले सकते हैं
किससे मिलेगी सूचना और कितना आवेदन शुल्क ?
इस कानून के तहत प्रत्येक सरकारी विभाग में जन/लोक सूचना अधिकारी (पीआईओ)
के पद का प्रावधान है. आरटीआई आवेदन इनके पास जमा करना होता है. आवेदन के
साथ केंद्र सरकार के विभागों के लिए 10 रुपये का आवेदन शुल्क देना पड़ता
है. हालांकि विभिन्न राज्यों में अलग-अलग शुल्क निर्धारित हैं. सूचना
पाने के लिए 2 रुपये प्रति सूचना पृष्ठ केंद्र सरकार के विभागों के लिए
देने पड़ते हैं. यह शुल्क विभिन्न राज्यों के लिए अलग-अलग है. आवेदन शुल्क
नकद, डीडी, बैंकर चेक या पोस्टल आर्डर के माध्यम से जमा किया जा सकता है.
कुछ राज्यों में आप कोर्ट फीस टिकटें खरीद सकते हैं और अपनी अर्ज़ी पर
चिपका सकते हैं. ऐसा करने पर आपका शुल्क जमा माना जाएगा. आप तब अपनी
अर्ज़ी स्वयं या डाक से जमा करा सकते हैं.

आवेदन का प्रारूप क्या हो ?
केंद्र सरकार के विभागों के लिए कोई निर्धारित प्रारूप नहीं है. आप एक
सादे कागज़ पर एक सामान्य अर्ज़ी की तरह ही आवेदन बना सकते हैं और इसे
पीआईओ के पास स्वयं या डाक द्वारा जमा कर सकते हैं. (अपने आवेदन की एक
प्रति अपने पास निजी संदर्भ के लिए अवश्य रखें)

सूचना प्राप्ति की समय सीमा
पीआईओ को आवेदन देने के 30 दिनों के भीतर सूचना मिल जानी चाहिए. यदि
आवेदन सहायक पीआईओ को दिया गया है तो सूचना 35 दिनों के भीतर मिल जानी
चाहिए.

सूचना न मिलने पर क्या करे ?
यदि सूचना न मिले या प्राप्त सूचना से आप संतुष्ट न हों तो अपीलीय
अधिकारी के पास सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद 19(1) के तहत एक
अपील दायर की जा सकती है. हर विभाग में प्रथम अपीलीय अधिकारी होता है.
सूचना प्राप्ति के 30 दिनों और आरटीआई अर्जी दाखिल करने के 60 दिनों के
भीतर आप प्रथम अपील दायर कर सकते हैं.

द्वितीय अपील क्या है?
द्वितीय अपील आरटीआई अधिनियम के तहत सूचना प्राप्त करने का अंतिम विकल्प
है. द्वितीय अपील सूचना आयोग के पास दायर की जा सकती है. केंद्र सरकार के
विभागों के विरुद्ध केंद्रीय सूचना आयोग है और राज्य सरकार के विभागों के
विरुद्ध राज्य सूचना आयोग. प्रथम अपील के निष्पादन के 90 दिनों के भीतर
या उस तारीख के  90 दिनों के भीतर कि जब तक प्रथम अपील निष्पादित होनी
थी, द्वितीय अपील दायर की जा सकती है. अगर राज्य सूचना आयोग में जाने पर
भी सूचना नहीं मिले तो एक और स्मरणपत्र राज्य सूचना आयोग में भेज सकते
हैं. यदि फिर भी कोई कार्रवाई नहीं होती है तो आप इस मामले को लेकर
हाईकोर्ट जा सकते हैं.

सवाल पूछो, ज़िंदगी बदलो
 सूचना कौन देगा ?
प्रत्येक सरकारी विभाग में जन सूचना अधिकारी (पीआईओ - PIO ) का पद होता
है. आपको अपनी अर्जी उसके  पास दाख़िल करनी होगी. यह उसका उत्तरदायित्व है
कि वह उस विभाग के  विभिन्न भागों से आप द्वारा मांगी गई जानकारी इकट्ठा
करे और आपको प्रदान करे. इसके अलावा कई अधिकारियों को सहायक जन सूचना
अधिकारी के  पद पर नियुक्त किया जाता है. उनका कार्य जनता से आरटीआई
आवेदन लेना और पीआईओ के  पास भेजना है.

आरटीआई आवेदन कहां जमा करें ?
आप अपनी अर्जी-आवेदन पीआईओ या एपीआईओ के पास जमा कर सकते हैं. केंद्र
सरकार के विभागों के मामलों में 629 डाकघरों को एपीआईओ बनाया गया है.
मतलब यह कि आप इन डाकघरों में से किसी एक में जाकर आरटीआई काउंटर पर अपना
आरटीआई आवेदन और शुल्क जमा करा सकते हैं. वहां आपको एक रसीद भी मिलेगी.
यह उस डाकघर का उत्तरदायित्व है कि वह उसे संबंधित पीआईओ के  पास भेजे.


यदि पीआईओ या संबंधित विभाग आरटीआई आवेदन स्वीकार न करे
ऐसी स्थिति में आप अपना आवेदन डाक द्वारा भेज सकते हैं. इसकी औपचारिक
शिक़ायत संबंधित सूचना आयोग को भी अनुच्छेद 18 के तहत करें. सूचना आयुक्त
को उस अधिकारी पर 25,000 रुपये का अर्थदंड लगाने का अधिकार है, जिसने
आवेदन लेने से मना किया था.


पीआईओ या एपीआईओ का पता न चलने पर
यदि पीआईओ या एपीआईओ का पता लगाने में कठिनाई होती है तो आप आवेदन
विभागाध्यक्ष को भेज सकते हैं. विभागाध्यक्ष को वह अर्जी संबंधित पीआईओ
के पास भेजनी होगी.

अगर पीआईओ आवेदन न लें
पीआईओ आरटीआई आवेदन लेने से किसी भी परिस्थिति में मना नहीं कर सकता. भले
ही वह सूचना उसके विभाग/कार्यक्षेत्र में न आती हो. उसे अर्जी स्वीकार
करनी होगी. यदि आवेदन-अर्जी उस पीआईओ से संबंधित न हो तो वह उसे उपायुक्त
पीआईओ के  पास पांच दिनों के भीतर अनुच्छेद 6(3) के तहत भेज सकता है.
क्या सरकारी दस्तावेज़ गोपनीयता क़ानून 1923 सूचना के अधिकार में बाधा है
नहीं. सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के अनुच्छेद 22 के अनुसार सूचना का
अधिकार क़ानून सभी मौजूदा क़ानूनों का स्थान ले लेगा.

अगर पीआईओ सूचना न दें
एक पीआईओ सूचना देने से मना उन 11 विषयों के लिए कर सकता है, जो सूचना का
अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद आठ में दिए गए हैं. इनमें विदेशी सरकारों से
प्राप्त गोपनीय सूचना, देश की सुरक्षा, रणनीतिक, वैज्ञानिक या आर्थिक
हितों की दृष्टि से हानिकारक सूचना, विधायिका के विशेषाधिकारों का
उल्लंघन करने वाली सूचनाएं आदि. सूचना का अधिकार अधिनियम की दूसरी
अनुसूची में उन 18 अभिकरणों की सूची दी गई है, जिन पर यह लागू नहीं होता.
हालांकि उन्हें भी वे सूचनाएं देनी होंगी, जो भ्रष्टाचार के आरोपों और
मानवाधिकारों के उल्लंघन से जुड़ी हों.

कहां कितना आरटीआई शुल्क
 प्रथम अपील/द्वितीय अपील की कोई फीस नहीं है. हालांकि कुछ राज्य
सरकारों ने फीस का प्रावधान किया है. विभिन्न राज्यों में सूचना शुल्क/
अपील शुल्क का प्रारूप अलग-अलग है.कहीं आवेदन के लिए शुल्क 10 रुपये है
तो कहीं 50 रुपये. इसी तरह दस्तावेजों की फोटोकॉपी के लिए कहीं 2 रुपये
तो कहीं 5 रुपये लिए जाते हैं.

क्या फाइल नोटिंग मिलता है ?
फाइलों की टिप्पणियां (फाइल नोटिंग) सरकारी फाइल का अभिन्न हिस्सा हैं और
इस अधिनियम के तहत सार्वजनिक की जा सकती हैं. केंद्रीय सूचना आयोग ने 31
जनवरी 2006 के अपने एक आदेश में यह स्पष्ट कर दिया है.


सूचना क्यों चाहिए, क्या उसका कारण बताना होगा ?
बिल्कुल नहीं. कोई कारण या अन्य सूचना केवल संपर्क विवरण (नाम, पता, फोन
नंबर) के अतिरिक्त देने की ज़रूरत नहीं है. सूचना क़ानून स्पष्टतः कहता है
कि प्रार्थी से संपर्क विवरण के अतिरिक्त कुछ नहीं पूछा जाएगा.



कैसे करे सूचना के लिए आवदेन एक उदाहरण से समझे  ?
 यह क़ानून कैसे मेरे कार्य पूरे होने में मेरी सहायता करता है? कोई
अधिकारी क्यों अब तक आपके रुके काम को, जो वह पहले नहीं कर रहा था, करने
के लिए मजबूर होता है और कैसे यह क़ानून आपके काम को आसानी से पूरा करवाता
है इसे समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं.

एक आवेदक ने राशन कार्ड बनवाने के लिए आवेदन किया. उसे राशन कार्ड नहीं
दिया जा रहा था. लेकिन जब उसने आरटीआई के तहत आवेदन दिया. आवेदन डालते
ही, उसे एक सप्ताह के भीतर राशन कार्ड दे दिया गया. आवेदक ने निम्न सवाल
पूछे थे:
1. मैंने एक डुप्लीकेट राशन कार्ड के लिए 10 नवंबर 2009  को अर्जी दी थी.
कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक प्रगति रिपोर्ट बताएं अर्थात मेरी
अर्जी किस अधिकारी के पास कब पहुंची, उस अधिकारी के पास यह कितने समय रही
और उसने उतने समय तक मेरी अर्जी पर क्या कार्रवाई की?
2. नियमों के अनुसार, मेरा कार्ड कितने दिनों के भीतर बन जाना चाहिए था.
अब तीन माह से अधिक का समय हो गया है. कृपया उन अधिकारियों के  नाम व पद
बताएं जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व
जिन्होंने ऐसा नहीं किया?
3. इन अधिकारियों के विरुद्ध अपना कार्य न करने व जनता के शोषण के  लिए
क्या कार्रवाई की जाएगी? वह कार्रवाई कब तक की जाएगी?
4. अब मुझे कब तक अपना कार्ड मिल जाएगा?
आमतौर पर पहले ऐसे आवेदन कूड़ेदान में फेंक दिए जाते थे. लेकिन सूचना
क़ानून के तहत दिए गए आवेदन के संबंध में यह क़ानून कहता है कि सरकार को 30
दिनों में जवाब देना होगा. यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, उनके वेतन में
कटौती की जा सकती है. ज़ाहिर है, ऐसे प्रश्नों का उत्तर देना अधिकारियों
के लिए आसान नहीं होगा.
पहला प्रश्न है : कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक उन्नति बताएं.
कोई उन्नति हुई ही नहीं है. लेकिन सरकारी अधिकारी यह इन शब्दों में लिख
ही नहीं सकते कि उन्होंने कई महीनों से कोई कार्रवाई नहीं की है. वरन यह
काग़ज़ पर ग़लती स्वीकारने जैसा होगा.

अगला प्रश्न है : कृपया उन अधिकारियों के नाम व पद बताएं जिनसे आशा की
जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया.
यदि सरकार उन अधिकारियों के  नाम व पद बताती है, तो उनका उत्तरदायित्व
निर्धारित हो जाता है. एक अधिकारी अपने विरुद्ध इस प्रकार कोई
उत्तरदायित्व निर्धारित होने के  प्रति का़फी सतर्क होता है. इस प्रकार,
जब कोई इस तरह अपनी अर्जी देता है, उसका रुका कार्य संपन्न हो जाता है.

घूस को मारिए घूंसा
 कैसे यह क़ानून आम आदमी की रोज़मर्रा की समस्याओं (सरकारी दफ़्तरों से
संबंधित) का समाधान निकाल सकता है. वो भी, बिना रिश्वत दिए. बिना जी-
हुजूरी किए. आपको बस अपनी समस्याओं के बारे में संबंधित विभाग से सवाल
पूछना है. जैसे ही आपका सवाल  संबंधित विभाग तक पहुंचेगा वैसे ही संबंधित
अधिकारी पर क़ानूनी तौर पर यह ज़िम्मेवारी आ जाएगी कि वो आपके सवालों का
जवाब दे. ज़ाहिर है, अगर उस अधिकारी ने बेवजह आपके काम को लटकाया है तो वह
आपके सवालों का जवाब भला कैसे देगा.

आप अपना आरटीआई आवेदन (जिसमें आपकी समस्या से जुड़े सवाल होंगे) संबंधित
सरकारी विभाग के लोक सूचना अधिकारी (पीआईओ) के पास स्वयं जा कर या डाक के
द्वारा जमा करा सकते हैं. आरटीआई क़ानून के मुताबिक़ प्रत्येक सरकारी विभाग
में एक लोक सूचना अधिकारी को नियुक्त करना आवश्यक है. यह ज़रूरी नहीं है
कि आपको उस पीआईओ का नाम मालूम हो. यदि आप प्रखंड स्तर के किसी समस्या के
बारे में सवाल पूछना चाहते है तो आप क्षेत्र के बीडीओ से संपर्क कर सकते
हैं. केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों के पते जानने के लिए आप इंटरनेट की भी
मदद ले सकते है. और, हां एक बच्चा भी आरटीआई क़ानून के तहत आरटीआई आवेदन
दाख़िल कर सकता है.

 सूचना ना देने पर अधिकारी को सजा

स्वतंत्र भारत के  इतिहास में पहली बार कोई क़ानून किसी अधिकारी की
अकर्मण्यता/लापरवाही के प्रति जवाबदेही तय करता है और इस क़ानून में
आर्थिक दंड का भी प्रावधान है.  यदि संबंधित अधिकारी समय पर सूचना उपलब्ध
नहीं कराता है तो उस पर 250 रु. प्रतिदिन के हिसाब से सूचना आयुक्त
द्वारा जुर्माना लगाया जा सकता है. यदि दी गई सूचना ग़लत है तो अधिकतम
25000 रु. तक का भी जुर्माना लगाया जा सकता है. जुर्माना आपके आवेदन को
ग़लत कारणों से नकारने या ग़लत सूचना देने पर भी लगाया जा सकता है. यह
जुर्माना उस अधिकारी के  निजी वेतन से काटा जाता है.
सवाल  :  क्या पीआईओ पर लगे जुर्माने की राशि आवेदक को दी जाती है?
जवाब  :   नहीं, जुर्माने की राशि सरकारी खजाने में जमा हो जाती है.
हालांकि अनुच्छेद 19 के तहत, आवेदक मुआवज़ा मांग सकता है.

आरटीआई के इस्तेमाल में समझदारी दिखाएं
कई बार आरटीआई के इस्तेमाल के बाद आवेदक को परेशान किया किया जाता है  या
झूठे मुक़दमे में फंसाकर उनका मानसिक और आर्थिक शोषण किया किया जाता है .
यह एक गंभीर मामला है और आरटीआई क़ानून के अस्तित्व में आने के तुरंत बाद
से ही इस तरह की घटनाएं सामने आती रही हैं. आवेदकों को धमकियां दी गईं,
जेल भेजा गया. यहां तक कि कई आरटीआई कार्यकर्ताओं पर कातिलाना हमले भी
हुए. झारखंड के ललित मेहता, पुणे के सतीश शेट्टी जैसे समर्पित आरटीआई
कार्यकर्ताओं की हत्या तक कर दी गई.
इन सब बातों से घबराने की ज़रूरत नहीं है. हमें इस क़ानून का इस्तेमाल इस
तरह करना होगा कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. मतलब अति उत्साह के
बजाय थोड़ी समझदारी दिखानी होगी. ख़ासकर ऐसे मामलों में जो जनहित से जुड़े
हों और जिस सूचना के सार्वजनिक होने से ताक़तवर लोगों का पर्दाफाश होना तय
हो, क्योंकि सफेदपोश ताक़तवर लोग ख़ुद को सुरक्षित बनाए रखने के लिए कुछ भी
कर सकते हैं. वे साम, दाम, दंड और भेद कोई भी नीति अपना सकते हैं. यहीं
पर एक आरटीआई आवेदक को ज़्यादा सतर्कता और समझदारी दिखाने की आवश्यकता है.
उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि आपको एक ऐसे मामले की जानकारी है, जिसका
सार्वजनिक होना ज़रूरी है, लेकिन इससे आपकी जान को ख़तरा हो सकता है. ऐसी
स्थिति में आप क्या करेंगे? हमारी समझ और सलाह के मुताबिक़, आपको ख़ुद
आरटीआई आवेदन देने के बजाय किसी और से आवेदन दिलवाना चाहिए. ख़ासकर उस
ज़िले से बाहर के किसी व्यक्ति की ओर से. आप यह कोशिश भी कर सकते हैं कि
अगर आपके कोई मित्र राज्य से बाहर रहते हों तो आप उनसे भी उस मामले पर
आरटीआई आवेदन डलवा सकते हैं. इससे होगा यह कि जो लोग आपको धमका सकते हैं,
वे एक साथ कई लोगों या अन्य राज्य में रहने वाले आवेदक को नहीं धमका
पाएंगे. आप चाहें तो यह भी कर सकते हैं कि एक मामले में सैकड़ों लोगों से
आवेदन डलवा दें. इससे दबाव काफी बढ़ जाएगा. यदि आपका स्वयं का कोई मामला
हो तो भी कोशिश करें कि एक से ज़्यादा लोग आपके मामले में आरटीआई आवेदन
डालें. साथ ही आप अपने क्षेत्र में काम कर रही किसी ग़ैर सरकारी संस्था की
भी मदद ले सकते हैं.
 सवाल - जवाब
 क्या फाइल नोटिंग का सार्वजनिक होना अधिकारियों को ईमानदार सलाह देने से
रोकेगा?
नहीं, यह आशंका ग़लत है. इसके  उलट, हर अधिकारी को अब यह पता होगा कि जो
कुछ भी वह लिखता है वह जन- समीक्षा का विषय हो सकता है. यह उस पर उत्तम
जनहित में लिखने का दबाव बनाएगा. कुछ ईमानदार नौकरशाहों ने अलग से
स्वीकार किया है कि आरटीआई उनके राजनीतिक व अन्य प्रभावों को दरकिनार
करने में बहुत प्रभावी रहा है. अब अधिकारी सीधे तौर स्वीकार करते हैं कि
यदि उन्होंने कुछ ग़लत किया तो उनका पर्दाफाश हो जाएगा. इसलिए, अधिकारियों
ने इस बात पर जोर देना शुरू कर दिया है कि वरिष्ठ अधिकारी भी उन्हें
लिखित में निर्देश दें.

क्या बहुत लंबी-चौड़ी सूचना मांगने वाले आवेदन को ख़ारिज किया जाना चाहिए?
यदि कोई आवेदक ऐसी जानकारी चाहता है जो एक लाख पृष्ठों की हो तो वह ऐसा
तभी करेगा जब सचमुच उसे इसकी ज़रूरत होगी क्योंकि उसके  लिए दो लाख रुपयों
का भुगतान करना होगा. यह अपने आप में ही हतोत्साहित करने वाला उपाय है.
यदि अर्ज़ी इस आधार पर रद्द कर दी गयी, तो प्रार्थी इसे तोड़कर प्रत्येक
अर्ज़ी में 100 पृष्ठ मांगते हुए 1000 अर्जियां बना लेगा, जिससे किसी का
भी लाभ नहीं होगा. इसलिए, इस कारण अर्जियां रद्द नहीं होनी चाहिए कि लोग
ऐसे मुद्दों से जुड़ी सूचना मांग रहे हैं जो सीधे सीधे उनसे जुड़ी हुई नहीं
हैं. उन्हें सरकार के अन्य मामलों के बारे में प्रश्न पूछने की छूट नहीं
दी जानी चाहिए, पूर्णतः ग़लत है. आरटीआई अधिनियम का अनुच्छेद 6(2)
स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से यह नहीं पूछा जा सकता कि क्यों वह कोई
जानकारी मांग रहा है. किसी भी मामले में, आरटीआई इस तथ्य से उद्धृत होता
है कि लोग टैक्स/कर देते हैं, यह उनका पैसा है और इसीलिए उन्हें यह जानने
का अधिकार है कि उनका पैसा कैसे ख़र्च हो रहा है और कैसे उनकी सरकार चल
रही है. इसलिए लोगों को सरकार के प्रत्येक कार्य की प्रत्येक बात जानने
का अधिकार है. भले ही वे उस मामले से सीधे तौर पर जुड़े हों या न हों.
इसलिए, दिल्ली में रहने वाला व्यक्ति ऐसी कोई भी सूचना मांग सकता है जो
तमिलनाडु से संबंधित हो.

सरकारी रेकॉर्ड्स सही रूप में व्यवस्थित नहीं हैं.
आरटीआई की वजह से सरकारी व्यवस्था पर अब रेकॉर्ड्स सही आकार और स्वरूप
में रखने का दवाब बनेगा. अन्यथा, अधिकारी को आरटीआई क़ानून के तहत दंड
भुगतना होगा.


प्रथम अपील कब और कैसे करें
आरटीआई की दूसरी अपील कब करें
ऑनलाइन करें अपील या शिकायत
कब करें आयोग में शिकायत
जब मिले ग़लत, भ्रामक या अधूरी सूचना
 समस्या, सुझाव और समाधान
आरटीआई और संसदीय विशेषाधिकार का पेंच
कब होगी न्यायालय की अवमानना
सूचना के बदले कितना शुल्क
डरें नहीं, आरटीआई का इस्तेमाल करें
 नेशनल आरटीआई अवार्डः सूचना के सिपाहियों का सम्मान
दिल्ली की एक संस्था पीसीआरएफ ने 2009 में एक अवार्ड की शुरुआत की. मक़सद
था उन लोगों की हौसला अफजाई और सम्मान, जिन्होंने अपनी जान की बाज़ी लगाकर
भ्रष्टाचार के ख़िला़फ हल्ला बोला, जिन्होंने सूचना क़ानून का इस्तेमाल
करके सरकारी व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर किया. सच और
ईमानदारी से काम करने वाले कई आरटीआई कार्यकर्ता को इसकी क़ीमत अपनी जान
गंवाकर चुकानी पड़ी.उन सभी देश भक्त लोगो को हम सब का सलाम !!!!!
यह सच है कि आरटीआई के अंतर्गत आने वाले आवेदनों की संख्या बहुत बढ़ी है
लेकिन अभी भी में इसमें बहुत ज़्यादा इजा़फे की गुंजाइश है. लोगों के बीच
आरटीआई के तहत मिलने वाली शक्तियों के बारे में और जागरूकता फैलाने की
ज़रूरत है..................

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