Friday, February 11, 2011

अपने घर में ही गुलाम बनाया ..........


आओ बात करें भारत के विकास की
देश को चला रहे मुट्ठीभर ख़ास की
कमजोर पड़ रहे आम समाज की
मजबूत हो रहे पूँजीवाद की


गरीबों को सताते ये बेहिसाब
कई बार होते ये बेनकाब
नहीं लेती सरकार कोई हिसाब
क्या यही है लोकतंत्र का इन्साफ


यही हैं जो बनाते फ़ॉर्मूले
गरीबों को और गरीब बनाने की
अपनी जमीन बचाने की,मजदूर की
मेहनत से मुनाफा कमाने की


कहीं अनाज सड़ जाता है
कहीं कोई भूखों सो जाता है
कारें कंप्यूटर सस्ते हो रहे
मजदूर के बच्चे दूध को रो रहे


पैसे को जोड़कर ये और बनाते पैसे
गरीबों की जेब से घटाते बचे हुए सिक्के
कारखानों को बढाने की फिराक में
ये बैठे हमारे जमीन की ताक़ में


कई सेज इन्होने बनाया,
गाँव तोड़ शहर बसाया
अपने घर में ही गुलाम बनाया
जंगल जलाया, पहाड़ तुड़वाया
बीटी कॉटन का दौर चलाया
किसानो से आत्महत्या करवाया


ये इन्ही की मेहरबानी है
की स्विस बैंक की दिवाली है
हज़ारों अरब नहीं वापस आनी है
देशवासियों से खुलेआम बेईमानी है


खेल से भी कमाने वाले ये लोग
आईपीएल,सी.डब्लू.जी में लगाया भोग
खेल का भी लोगों ने खेल बनाया
पैसे और सियासत ने इसे चलता बनाया


कोर्पोरेट्स की कमाई यहाँ
कई गुना बढ़ जाती है
पल भर में अम्बानी की कमाई
पाँच सौ हो जाती है, कईयों को
दिन भर की मेहनत भी
इसकी आधी दिला नहीं पाती है


ये भारत की ही संसद है,जो
अम्बानी भाइयों के झगडे सुलझाने
में दिन रात एक कर देती है
और किसानों की आत्महत्या पर
चर्चा भी नहीं ठीक से करती है


लोकतंत्र के मायने खो गए कहीं
हमारी आवाजें दब सी गयी कहीं
सरकार लाचार दिख रही कहीं….


--

व्यवस्था परिवर्तन

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