एक अँधा लड़का सड़क के किनारे बैठा था. उसके पैरों के पास ही एक तख्ती रखी थी. जिस पर लिखा था, "मैं अँधा हूँ, कृपया मेरी सहायता कीजिये." और पास ही उसकी टोपी रखी थी जिसमे बहुत थोड़े से सिक्के पड़े थे. |
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एक आदमी वहां से गुजरा. उसने लड़के के टोपी में थोड़े से सिक्के देखे. उसकी नज़र तख्ती पर पड़ी. उसने अपने जेब से कुछ सिक्के निकाले और उसकी टोपी में डाल दिए. उसने तख्ती उठाई और उसमे लिखे वाक्य को मिटा कर उस तख्ती पर कुछ और लिखा वापस तख्ती को उसकी जगह पर रखा और अपने रास्ते चला गया. |
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थोडी देर बाद उस अंधे लड़के ने महसूस किया की उसकी टोपी सिक्को से भर गयी है. पहले की अपेक्षा ज्यादा लोगों ने उसकी टोपी में पैसे डाले.
दोपहर में वही आदमी जिसने सुबह तख्ती पर लिखे वाक्य को बदला था, ये देखने वापस आया की उसके लिखे वाक्य का क्या असर हुआ. अंधे लड़के ने उसके क़दमों की आहट पहचान ली, "आप वही है ना जिसने सुबह मेरी तख्ती पर शायद कुछ लिखा था." उसने पूछा, "क्या लिखा था आपने ?" |
उस आदमी ने कहा, "मैंने भी वही सच लिखा, जो तुमने लिखा था. लेकिन एक दुसरे तरीके से." |
उसने लिखा था, "आज कितना खूबसूरत दिन है, पर मैं इसे देख नहीं सकता." |
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आप क्या समझते है, पहले लिखा वाक्य और दूसरा दोनों ही एक ही बात कह रहे थे ?
निःसंदेह, दोनों ही वाक्य का अर्थ एक ही था पर पहला वाक्य ये कह रहा था की वो लड़का अँधा है और दूसरा वाक्य ये कह रहा था की उसकी अपेक्षा दुसरे लोग कितने भाग्यशाली है जो इस खूबसूरत दुनिया को देख सकते है. और यही वजह थी की दूसरा वाक्य ज्यादा प्रभावकारी साबित हुआ. |
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